नागौर/जायल। खानों में उड़ती डस्ट (धूल) के बीच कार्य करने वाले श्रमिक लाइलाज बीमारी सिलिकोसिस की च पेट में आ रहे हैं। सिलिकोसिस बीमारी से बचने के उपायों की जानकारी एवं जागरूकता के अभाव में पीडित 40 से 50 वर्ष की आयु भी पूर्ण नहीं कर पा रहे हैं। असामयिक मौत के चलते परिवार के अन्य लोगों पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ता है, लेकिन उनकी खैर-खबर लेने वाला कोई नहीं है।
16 में से दो की मौत
जायल तहसील क्षेत्र में सिलिकोसिस प्रभावितों की संख्या तो हजारों में है, लेकिन चिह्नीकरण के अभाव में सरकारी आंकड़े अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं। हाल ही बड़ीखाटू में खान मजदूर सुरक्षा अभियान नामक गैर सरकारी संगठन के सक्रिय होने के बाद इस क्षेत्र में चौकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। संगठन के जिला समन्वयक घनश्याम जनागल बताते हैं कि बड़ीखाटू खनन क्षेत्र में सिलिकोसिस से प्रभावित 16 लोगों की पहचान हो चुकी है इनमें से 2 की मृत्यु हो गई।
कलक्टर को दिया ज्ञापन
सिलिकोसिस बीमारी से पीडित अब्दुल गफार व मृतक पूर्णाराम की बेवा घेवरीदेवी सहित अन्य पीडितों ने 19 नवम्बर को कलक्ट्रेट के सामने धरना देकर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया। पीडितों ने बताया कि कलक्टर ने उन्हें चार-पा ंच दिन में समाधान कराने का आश्वासन दिया, लेकिन एक सप्ताह बाद भी कोई कारवाई नहीं हुई है।
क्या है बचाव
सिलिकोसिस बीमारी का बचाव ही इलाज है। यह एक लाइलाज बीमारी है। इससे बचाव के लिए खनन क्षेत्रों में क ाम में ली जाने वाली ड्रील मशीन की जगह गीली प्रणाली से ड्रिलिंग करना चाहिए। खान मजदूर को अच्छी क्वालिटी के मास्क का प्रयोग करना चाहिए व खानों के आसपास नियमित पानी का छिड़काव करना चाहिए। खाना खाने से पहले हाथ अच्छी तरह से धोना चाहिए। – See more
सौजन्य से: राजस्थान पत्रिका
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