जानलेवा बीमारी सिलिकोसिस की न तो जिले में उपचार की कोई व्यवस्था है और न ही जांच की। गाजियाबाद में स्वास्थ्य विभाग बेशक मरीजों को कितना ही बेहतर उपचार देने के दावे करे, लेकिन इस रोग के उपचार की यहां कोई व्यवस्था नहीं है। हाल ही में शासन ने मुख्य चिकित्साधिकारी से ब्योरा मांगा है कि जिले में सिलिकोसिस बीमारी के कितने रोगी हैं और उनके इलाज की क्या व्यवस्था है। शासन का पत्र मिलने से स्वास्थ्य विभाग में हडकंप मचा है। स्वास्थ्य विभाग के लिए ऐसे मरीजों को ढूंढना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि जब जांच ही नहीं तो मरीज कैसे। इस गंभीर बीमारी के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में केस भी दर्ज हुआ है कि इस रोग से पीड़ित मरीजों के इलाज की क्या व्यवस्था है। अब शासन ने इस बीमारी के मरीजों का सीएमओ से जवाब मांगा है। ताकि इनका चिन्हीकरण कर इनका तुरंत उपचार कराया जा सके।
क्या है रोग
सिलिकोसिस बीमारी खदान में काम करने वाले, पत्थरों को तोड़ने और काटने वाले, चूड़ियां बनने वाले मजदूरों में सबसे ज्यादा होती है और इत्तेफाक से जिले में अधिकतर मजूदर यही सभी काम करते हैं, जिससे इनमें इस बीमारी की संभावना अधिक रहती है। शुरुआत में यह रोग बिल्कुल सामान्य लगता है। फिर कुछ समय बाद इसके लक्षण बिल्कुल टीबी के समान लगते हैं। प्रारंभिक अवस्था में चिकित्सक इस रोग की पहचान टीबी के रूप में ही करता है और उसी हिसाब से उपचार करता है, लेकिन काफी समय बाद सिलिकोसिस के लक्षण दिखाई देते हैं। सिलिकोसिस के जानकार डा.मनोज शर्मा बताते हैं कि इस बीमारी में मरीज की छाती पत्थर जैसी सख्त हो जाती है, जिसका कोई उपचार नहीं बचता है। यह रोग मुख्य रूप से रेत ,बालू, कांच और पत्थर तोड़ने वालों को होता है, क्योंकि ये लोग काम करते वक्त मुंह पर कपड़ा नहीं बांधते हैं, जिससे इन पदार्थो के कण श्वास नली के जरिए फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं।
जवाब देने से बचते रहे सीएमओ
जिले में मरीजों का चिह्नीकरण स्वास्थ्य विभाग कैसे करेगा और उन्हें किस प्रकार जागरूक करेगा। इस बाबत सीएमओ डा.अजेय अग्रवाल भी जवाब देने से बचते नजर आए।
सौजन्य से: जागरण डॉट कॉम
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