जिले के सिलिकोसिस प्रभावितों को राहत देने की शुरुआत से ग्रामीणों को राहत मिली है। दरअसल शासन के आदेश के बाद सभी प्रकार के सिलिकोसिस मरीजों को आर्थिक सहायता के एलान के बाद औद्योगिक एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा पीड़ितों के गांव पहुंचकर उनसे आवेदन लिया।
जिले में सर्वप्रथम 2013 में सिलिकोसिस से मौत की पुष्टि उस समय हुई जब एक संस्था ने मरीजों के चिता की राख का परीक्षण हैदराबाद की लैब में कराया। जिले में सिलिकोसिस की धमक को लेकर नईदुनिया ने प्रमुखता से खबर का प्रकाशन किया। नईदुनिया द्वारा सिलिकोसिस को लेकर लगातार खबरें प्रकाशन के बाद प्रशासन ने क्वाट्राइज्ड पत्थर घिसाई करने वाली एक फैक्ट्री को सील कर दिया जो आज भी बंद है। इसके बाद दूसरी फैक्ट्रियां जहां क्वाट्राइज्ड पत्थर की घिसाई होती है, वहां औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग द्वारा लगातार कार्रवाई के बाद फैक्ट्री प्रबंधन काफी हद तक सुरक्षा मानकों का पालन करने लगे। लेकिन लगातार सिलिकोसिस मरीजों के सामने आने व मरने का सिलसिला नहीं थमा। 2013 से अब तक सिलिकोसिस पीड़ित 8 ग्रामीण महिला-पुरुषों की मौत हो चुकी है। वहीं औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग द्वारा कराए गए परीक्षण में अब तक मात्र चार में ही सिलिकोसिस की पुष्टि हुई है। लेकिन जनचेतना की पहल पर सिलिकोसिस विशेषज्ञ डॉ. मुरलीधरन की 2015 की रिपोर्ट अनुसार 9 ग्रामीणों में सिलिकोसिस की पुष्टि हुई थी। विस्तार से देखें
सौजन्य से: नई दुनिया
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